हमारे यहाँ मोलभाव (नहीं) होता है!
शॉपिंग का असली मज़ा कोई चीज़ खरीदने से ज़्यादा उसके लिए बारगेन करने में है, असली सुकून तो मोलभाव करके दो पैसे कम कराके ही मिलता है
इसमें तो कोई दो राय नहीं हैं कि कोई भी दुकानदार अपनी चीज को अधिकतम मुनाफे के साथ बेचना चाहता है और हर एक ग्राहक वही चीज कम से कम दाम में खरीदना चाहता है। बस, इसी वजह से दुकानदार और ग्राहक के बीच यह मोलभाव की रस्सा-कस्सी हर छोटी-बड़ी, नामी-गिरामी दुकान पर चलती ही रहती है। फिर चाहे वो किसी सब्जी वाले का ठेला हो जहाँ खरीददारी महज़ 10 रुपए की हो रही हो या फिर किसी ज्वैलर की दुकान जहाँ लाखों का सौदा हो रहा हो, मोलभाव हर जगह जारी है।
कई लोग तो मॉल्स अादि में शॉपिंग नहीं करने की वज़ह यही बताते हैं कि उन्हें वहाँ मोलभाव करने को जो नहीं मिलता। उन्हें इस बात से कोई मतलब नहीं है कि वही चीज़ उन्हें मॉल में, बाज़ार की लोकल दुकान से सस्ती मिली या महँगी, मोलभाव करके चीज़ लेने में दिल को जो सुकून मिलता, वो मॉल की खरीददारी या ऑनलाइन शॉपिंग में कहाँ?
दुकानदार भी इस तथ्य को स्वीकार करते हैं कि ग्राहक को हम बेशक एकदम वाजिब दाम और कम से कम मुनाफे पर भी चीज़ बेच रहे हों, जब तक वो अपनी तरफ से ‘थोड़ा’ कम करा नहीं लेते, उन्हें तसल्ली नहीं होती। और कई दुकानदार इसीलिए अपने यहाँ बिकने वाली चीजों पर पहले से ही इसकी गुंजाइश रख लेते हैं और चीजों के दाम उसी प्रकार बताते हैं।
अपने ही शहर में पर्दे-चद्दरों की लगभग 50 वर्ष पुरानी दुकान (आज एक शोरूम) के एक नामी व्यापारी ने हमें बताया कि हालाँकि उन्होंने अपने कैश काउंटर पर लिखवा रखा है – ‘हमारे यहाँ मोलभाव नहीं होता है’, लेकिन पूरे दिन में कोई ऐसी बिक्री नहीं होती जिस में ग्राहक हमसे उसी दाम पर चीज ले जाए जो हम पहली बार में पूछने पर उसे बताते हैं। वे बताते हैं कि ग्राहक उनसे पुराने संबंधों का हवाला देते हुए ठीक-ठीक दाम लगाने को कहते हैं। अब उनसे संबंध बनाए रखने के लिए और उससे भी बड़ी बात कि उनके दिल को यह तसल्ली दिलाने के लिहाज़ से कि वे बारगेन करके सस्ते में चीज़ लेकर जा रहे है, हमें 5-10% का डिस्काउंट देना ही पड़ता है। अाप ही बताइए ऐसे में यदि हमने अपने दाम पर पहले से ही इस डिस्काउंट की गुंजाइश ना रखी हो तो चल चुकी हमारी दुकान।
हमारे यह पूछने पर कि चलिए मान लिया कि जो ग्राहक आपसे मोलभाव करके चीज़ लेकर जाते हैं वो तो दरअसल वाजिब दाम पर चीज़ लेकर जा रहे हैं लेकिन बेचारे जो ग्राहक कैश काउंटर पर लिखी आपकी इस उद्घोषणा को सही मान कर आपके द्वारा बताए गए दाम पर ही चीज़ लेकर जाते होंगे, उनके साथ तो धोखा ही हो जाता होगा। इस पर बड़ी ज़ोर से हँसते हुए उन्होंने उत्तर दिया – बेचारे? हैं कहाँ ऐसे बेचारे अपने शहर में?? मैं अपने िपताजी के समय से इस दुकान पर बैठ रहा हूँ, इन 32-35 सालों में तो कभी कोई ऐसा बेचारा हमारी दुकान पर आया नहीं, जो बिना मोलभाव किए कुछ खरीद ले गया हो।
हमने पूछा कि ऐसे में कैश काउंटर पर साफ-साफ लिखे हुए इस नोटिस का मतलब…? एक बार फिर हँसते हुए उन्होंने जवाब दिया कि इसमें लिखा ‘नहीं’ किसी ग्राहक को शायद नज़र ही नहीं आता… आपको भी यह अभी इसलिए दिख रहा है क्योंकि अभी आप अपनी स्टोरी के लिए आए हैं, कभी शॉपिंग के लिए आइए यहाँ तब आपको भी यह ‘नहीं’ नज़र नहीं आएगा।
मुख्य बाज़ार की ही, जूतों-चप्पलों की एक प्रतिष्ठित दुकान जिसके साइन बोर्ड पर, काँच के मेनगेट पर, काउंटर पर…सब जगह लिखा है ‘FIXED RATE – एक ही दाम’। वहाँ पर एक ग्राहक को मोलभाव करते देखकर हमने इसका कारण पूछा तो उन्होंने बड़े ही दार्शनिक भाव से जवाब दिया – भाई साहब, जूते के लिए क्या, अपन लोग तोे शादी-ब्याहों में बारात कितने लोगों की लानी है, लड़की वालों से इसके लिए भी बारगेन करते हैं…!
दरअसल लोग मोलभाव करके शॉपिंग करना ही पसंद करते हैं, फिक्स्ड रेट पर चीज़ लेना उन्हें संतुष्टि नहीं देता। इस बात का इससे बड़ा सबूत और क्या होगा कि शहर में ऑटो रिक्शा-टैक्सी के मनमाने किरायों से निजात दिलाने की गरज से ‘फिक्स्ड फेयर’ वाली एक टैक्सी के मालिक ने हमें बताया कि ग्राहक यात्री तो उनसे भी मोलभाव करके ‘ठीक-ठीक’ किराया लेने का प्रस्ताव देते हैं।