अजमेर के टॉप 10 स्ट्रीट फूड्स जो आपको जरूर खाने चाहिए
हर जगह का अपना-अपना पानी, अपना-अपना स्वाद होता है। हर जगह की खाने-पीने की कुछ विशिष्ट चीजें और उनके स्वाद ऐसे निराले होते हैं कि वो आपको किसी और जगह पर कभी नहीं मिलेंगे और फिर ये स्वाद ही उन जगहों की खास पहचान बन जाते हैं। लोग दूर-दूर से इन्हीं चीजों को खाने और इन स्वादों को लेने के लिए उन जगहों पर खिंचे चले आते हैं।
अजमेर के बहुत से स्ट्रीट फूड्स ऐसे हैं जो वैसे तो हर जगह मिल जाएंगे, लेकिन उनका स्वाद ऐसा अनूठा है कि वह स्वाद आपको दुनिया के किसी कोने में नहीं मिलेगा। इनमें से टॉप 10 हम यहाँ बता रहे जो आपको अजमेर में जरूर खाने चाहिए।
- कढ़ी कचौरी: अजमेर के जो लोग यहीं पले-बढ़े हैं और जिन्हें किसी कारण से अजमेर छोड़ कर किसी और शहर में रहना पड़ता है, उन्हें अपने गली-मोहल्ले-शहर-लोगों से बिछड़ने का इतना दर्द नहीं होता जितना यहाँ की कढ़ी कचौरी से वंचित होने का होता है। अजमेर की कचौरी में दाल की फिलिंग तो इसे लजीज़ बनाती ही है, लेकिन अजमेर में कचौरी गर्मागर्म कढ़ी के साथ खाई जाती है और यही तालमेल ही इसे अजमेर की नायाब सौगात बना देता है।
- कढ़ी समोसा: आलू के समोसे वैसे तो कोई अनूठी डिश नहीं है लेकिन जब बात हो रही हो अजमेर के समोसे की तो मुँह में पानी आ ही जाता है। राजस्थान में वैसे भी मिर्ची तेज़ ही खाई जाती है लेकिन अजमेर के समोसे का मसाला बहुत मसालेदार, तीखा और चटपटा बनाया जाता है। बाकी सब जगह समोसे को इमली-पोदीने की चटनी के साथ या कुछ जगहों पर छोलों (सफेद चनों) के साथ खाया जाता है, लेकिन यहाँ इसे पत्तों या कागज़ से बने डोने में गर्मागर्म कढ़ी के साथ, ऊपर से खट्टी-मीठी चटनियाँ डालकर खाया जाता है। ऐसे दो समोसे खाकर आप इतना तृप्त महसूस करेंगे कि आपको एक समय का खाना छोड़ना पड़ जाएगा।
- प्याज की कचौरी: हालाँकि अजमेर की दाल की कचौरी यहाँ का ऐसा पकवान है जो आपको शहर के किसी भी गली-नुक्कड़-बाज़ार में मिल जाएगी, लेकिन शहर में कई दुकानों पर आपको प्याज की कचौरी भी मिल जाएगी। आमतौर पर इसे ऐसे ही गर्म-गर्म या फिर गुड़-इमली की खट्टी-मीठी चटनी के साथ खाया जाता है। आकार में यह दाल की कचौरी से बड़ी और प्याज के मसाले से भरी होती है, इसलिए एक ही काफी रहती है। अगर आप स्वाद के चक्कर में कहीं दो ऐसी कचौरियाँ खा लेते हैं, तो फिर खाने की छुट्टी।
- दाल पकवान: अजमेर में आप छुट्टी वाले दिन अपने किसी सिन्धी मित्र के यहाँ सुबह नाश्ते के समय पहुँच जाइए और पूरा इत्मिनान रखिए कि आपके सामने यह लाजवाब और पौष्टिक पकवान आने वाला है। पकवान दरअसल तेल में डीप फ्राइ की हुई गेहूँ-मैदे की रोटी होती है जिसे चने की दाल और पोदीने की चटनी के सा़थ खाया जाता है। मूल रूप से एक सिन्धी डिश जो यहाँ इतनी ज़्यादा पसंद की जाती है कि यह आपको अजमेर में कई चाट की दुकानों पर मिल जाएगी।
- दाल के भुज्जे: अजमेर में शायद ही कोई ऐसी चाट की दुकान या ठेला होगा जहाँ आपको यहाँ के कुरकुरे और तीखे मूंग की दाल के भुज्जे (पकौड़े/वड़े) ना मिलें। हालाँकि दाल के पकौड़े आपको अजमेर के अलावा भी कई जगह खाने को मिलेंगे लेकिन अजमेर का तीखापन और इसके ऊपर पोदीने की और तीखी चटनी इसे खाने-पीने के शौकीन लोगों की खास पसंद बना देता है। जब किसी दिन अचानक बरसात हो जाए या मौसम सुहावना-ठण्डा हो जाए, तब आप किसी भुज्जे वाले की दुकान पर चले जाइए… भीड़ में आपका नंबर आने में आधा घंटा भी लग सकता है।
- मिर्ची का कोफ्ता: अजमेर की कोई भी चाट हो तो उसमें तेज मिर्च तो होगी ही, लेकिन उस तीखेपन का ज़ायका और बढ़ाने के शौकीन लोगों के लिए हाजिर है- यहाँ का मशहूर मिर्ची वड़ा। इसमें एक पूरी हरी मिर्च में आलू का मसाला भरकर उसे बेसन के घोल में डुबोकर डीप फ्राइ किया जाता है। फिर इसे अजमेर की हरेक चाट की खासियत- गर्मागर्म कढ़ी के साथ खाया जाता है जो आपको इसे हिचकियाँ ले लेकर और आँखों में से पानी बहाते हुए भी खाते रहने पर मजबूर कर देती है।
- आलू का कोफ्ता: वैसे तो आलू का कोफ्ता (बटाटा वड़ा) आपको अजमेर में ही नहीं बल्कि देशभर में कहीं भी मिल जाता है पर अजमेर के वड़ों की आलू की फिलिंग ही है जो इसे बाकी जगहों से अलग बनाती है। कहने को तो यह मुंबई और गुजरात के मशहूर ‘वड़ा-पाव’ वाला वड़ा ही है और वहाँ का भी बहुत पसंद किया जाता है, लेकिन वहाँ के वड़े किसी अजमेरवासी को प्रभावित नहीं कर पाएंगे। हाँ, जब कोई मुंबई वाला अजमेर के आलू का कोफ्ता, पत्ते के डोने में कढ़ी-चटनी के साथ खाता है तो अक्सर अपनी उंगलियाँ चाटते हुए, इसी स्वाद का मज़ा लेने के लिए दोबारा अजमेर आने का वादा करता जाता है।
- आलू की टिक्की: महाराष्ट्र और गुजरात की ‘रगड़ा पेटी’ और दिल्ली की ‘टिकिया’ जब अजमेर में किसी चाटवाले के तवे पर से शैलो फ्राइ होकर उतरती है तो यह हिन्दुस्तान के किसी भी शहर की चाट को धूल चटा सकती है। अजमेर में बनने वाली टिक्की तवे पर इतनी ज़्यादा देर तक शैलो फ्राइ की जाती है कि उसकी एक साइड खूब कड़क और कुरकुरी हो जाती है। फिर इसे तवे से सीधे डोने में ही उतार कर सफेद चनों (छोलों) के साथ इमली की खट्टी-मीठी और पोदीने की तीखी चटनियाँ डाल कर खाने के लिए दिया जाता है। और स्वाद? स्वाद ऐसा कि आप बिना इसकी परवाह किए कि यह खूब देर तक गर्म तवे पर सिकने के बाद सीधे आपके डोने में उतारी गई है, आप इसके ठंडे होने का इंतज़ार नहीं कर सकते और अक्सर मुँह जला लेते हैं। पर, यही इसका मज़ा है कि चाट की दुकानों पर फूँक-फूँक कर खाते हुए लोगों की भीड़ हमेशा लगी ही रहती है।
- दही वड़ा: दक्षिण भारत में ‘थयिर वड़ा’ , बंगाल में ‘दोइ बोरा’, दिल्ली-पंजाब में ‘दही भल्ला’ और मुंबई में यही दही वड़ा जो कि वहाँ एक स्वीट डिश की तरह जाना जाता है, लेकिन अजमेर के मूंग की दाल का एकदम नरम और दानेदार दही वड़ा लगभग हर चाट वाली दुकान और ठेले की एक जरूरत है। अजमेर के दही वड़ों के स्वाद की लोगों को यहाँ ऐसी लत लगी हुई है कि कोई भी वार-त्योहार का खाना और शादी-ब्याह की पार्टी बिना इसके आप सोच ही नहीं सकते। और जब ऐसा कोई मौका ना हो और आपका मन दही वड़े खाने को कर जाए तो बस ज़रा घर से बाहर निकलिए और किसी भी चाट की दुकान पर जाकर अपनी जिव्हा को शांत कर लीजिए।
- पानी पताशे: मुंबई की ‘पानी पूरी’, बिहार की तरफ के ‘पचके’ और दिल्ली के ‘गोल गप्पे’, अजमेर में पानी पताशों के रूप में शहर के चप्पे-चप्पे पर लोगों को मुँह बंद करके‘म्म…म्म’ की आवाज़ें निकालते हुए दुकानदार के आगे हाथ में डोने लिए हुए अपनी बारी का इंतज़ार करने पर मजबूर कर देते हैं। अजमेर के पानी पताशों की पहली खासियत तो इनकी बेहद पतली परत है जो कि अजमेर के बाहर से आए हुए लोगों को तो यह सोचने पर मजबूर कर देती है कि बनाने वाले ने इन्हें बनाया कैसे होगा? इतने पतले पताशे में आलू-मसाला-बूंदी और पानी कैसे भरा जाएगा? मुँह तक ले जाते समय यह कहीं टूट तो नहीं जाएगा? फिर, दूसरी खासियत है इनमें भरे जाने वाला बर्फ डालकर ठण्डा किया हुआ मसालेदार, खट्टा-मीठा और बेहद पाचक पानी जो मुँह में पताशे के फूटते ही गले से लेकर पेट तक ठंडक महसूस करा देता है। स्वाद ऐसा कि जिसने भी एक बार चख लिया, फिर वो दुनियाभर में कहीं भी चला जाए, कई वर्षों के बाद भी पानी पताशे का नाम सुनते ही अजमेर के पानी पताशों को ही याद करेगा और उसके मुँह में सचमुच पानी आ जाएगा।